जानें उपचारात्मक याचिका (Curative Petition in hindi) के बारे सम्पूर्ण विस्तरित जानकारी हिंदी में की Curative Petition का अर्थ क्या है और इसकी शुरुआत कब और क्यों हुई एवं उपचारात्मक याचिका की प्रक्रिया और संवैधानिक प्रावधान क्या हैं।
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उपचारात्मक याचिका – भारत एक लोकतांत्रात्मक देश है यहां पर रहने वाले सभी लोगो को अपने हक के लिए लड़ने एवं अपने अधिकारों को लागू करने का हक़ है। व्यक्ति न्याय पाने के लिए कोर्ट में अलग-अलग अपील एवं पुनर्विचार याचिका लगता रहता है। इसी में न्याय प्राप्त करने का अंतिम उपचार उपचारात्मक याचिका (क्यूरेटिव पिटीशन) है।
क्या है उपचारात्मक याचिका ? (curative petition meaning in hindi)
क्यूरेटिव पिटीशन शब्द की उतप्ति “cure” से हुई है जिसका अर्थ “उपचार” होता है
उपचारात्मक याचिका (क्यूरेटिव पिटीशन) सजा पाने वाले (यानि आरोपी) द्वारा न्यायालय में लगाई जाने वाली अंतिम याचिका होती है। जब आरोपी के पास न्याय के सभी रास्ते बंद हो जाते है तब न्याय पाने का यह अंतिम उपाय होता है।
यह अंतिम न्यायिक उपाय है इसका सहारा कोई भी व्यक्ति ले सकता है यह याचिका तब लगाई जाती है जब किसी व्यक्ति को यह लगे कि सर्वोच्च न्यायालय से वास्तविक न्याय नहीं मिला है, और उस व्यक्ति को यह लगता है कि उच्चतम न्यायालय ने अंतिम निर्णय में कोई भूल की है तब अंतिम रूप से न्याय पाने पाने के लिए सर्वोच्च न्यायालय में लगाई जाती है। इस याचिका में यह बताना आवश्यक होता है कि वह किस आधार पर सर्वोच्च न्यायालय के अंतिम निर्णय को चुनौती दे रहा है।
उपचारात्मक याचिका की शुरुआत (Start of the curative petition in Hindi)
इस याचिका की शुरुआत वर्ष 2020 में रूपा अशोक हुरा बनाम अशोक हुरा और अन्य के मामले की सुनवाई से हुई इस मामले की सुनवाई के दौरान यह प्रश्न उठा कि क्या सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दोषी ठहराए गए किसी भी व्यक्ति की पुनर्विचार याचिका ख़ारिज होने के बाद क्या दोषी के पास सजा में राहत के लिए कोई न्यायिक विकल्प है। तब सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अपने ही निर्णय को बदलने लिए उपसगारात्मक याचिका की अवधारणा प्रस्तुत गई।
इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय के पाँच जजों की पीठ द्वारा उपचारात्मक याचिका की रुपरेखा निर्धारित की गई। इसके बाद न्यायालय उपचारात्मक याचिका के तहत निर्णय पर पुनर्विचार के लिए तैयार की गई।
उपचारात्मक याचिका का मामला (Curative Petition’s Case)
इस याचिका का एक मामला जो देश का सबसे चर्चित निर्भया केस में भी इस याचिका की अवधारणा सामने आई जो इस प्रकार है –
- 16 दिसम्बर 2012 को दिल्ली में निर्भया रेप की घटना घटित हुई।
- 29 दिसम्बर 2012 को पीड़िता निर्भया की सिंगापुर इलाज के दौरान मौत हो गई।
- मार्च 2013 में इस मामले के एक आरोपी ने जेल में आत्महत्या कर ली।
- सितंबर 2013 में इस मामले की सुनवाई करते हुए विशेष फ़ास्ट ट्रैक कोर्ट ने चारो आरोपियों को दोषी ठहराया और उन्हें मृत्यु दण्ड की सजा सुनाई। जबकि इस अन्य नाबालिक आरोपी को किशोर न्यायिक बोर्ड ने तीन वर्ष के लिए सुधार घर में भेज दिया।
- मार्च 2014 को दिल्ली उच्च न्यायालय ने चारो आरोपियों की सजा को बनाए रखा।
- नवम्बर 2017 में मामले के एक आरोपी मुकेश द्वारा सर्वोच्च न्यायालय में दायर पुनर्विचार याचिका ख़ारिज कर दी गई।
- 9 जुलाई 2018 को बाकी तीन दोषियों की और से उच्चतम न्यायालय में दाखिल पुनर्विचार याचिका को ख़ारिज करते हुए कोर्ट ने मृत्युदंड की सजा को बरकरार रखा।
- 7 जनवरी 2020 को दिल्ली की पटियाला हॉउस कोर्ट ने चारो आरोपियों का डेथ वारंट जारी करते हुए 22 जनवरी 2020 को मृत्यु दंड की तारीख निर्धारित की गई।
- 9 जनवरी 2020 को मामले के दो आरोपियों ने उच्चतम न्यायालय में उपचारात्मक याचिका दाखिल की जिस पर 14 जनवरी 2020 को सुनवाई करते हुए कोर्ट ने याचिका को ख़ारिज करते हुए मृत्यु दंड की सजा को बनाए रखा।
अतः इस मामले में आरोपियों ने अपने हित में न्याय प्राप्त करने के लिए पूरी तरह से प्रयास किये पर उनको उनके द्वारा किये गए कृत्य का दण्ड मिल गया। अतः इस मामले में भी आरोपियों द्वारा उपचारात्मक याचिका का प्रयोग किया गया पर इसका लाभ भी उनको नहीं मिल पाया।
उपचारात्मक याचिका का प्रयोग (Use of Curative Petition in hindi)
सामान्यत: यह याचिका तब लगाई जाती है जब किसी आरोपी की दया याचिका (पुनर्विचार याचिका) राष्ट्पति द्वारा और सुप्रीम कोर्ट द्वारा ख़ारिज कर दी जाती है। तब आरोपी के पास एक यह अंतिम सहारा होता है कि वह उपचारात्मक याचिका (क्यूरेटिव पिटीशन) द्वारा सजा में नरमी की गुहार लगा सकता है। यह सबसे अंतिम उपचार होता है इसका फैसला आने के बाद सभी रास्ते बंद हो जाते है और इसका निर्णय अंतिम होता है।
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उपचारात्मक याचिका दायर की प्रक्रिया (Curative Petition Filed Procedure)
क्यूरेटिव पिटीशन अंतिम रूप से सजा सुनाये जाने तथा इसके विरुद्ध पुनर्विचार याचिका ख़ारिज हो जाने के पश्चात ही दायर की जाती है।
उच्चतम न्यायालय में उपचारात्मक याचिका पर सुनवाई तभी होगी जब याचिकाकर्ता यह प्रमाणित कर देता है कि उसके मामले में न्यायालय ने नैसर्गिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन किया है।
उपचारात्मक याचिका का सर्वोच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता द्वारा प्रमाणित होना अनिवार्य है। इसके बाद सर्वोच्च न्यायालय के तीन वरिष्टतम न्यायाधीशों को भेजी जाएगी। तथा इसके साथ ही यह याचिका से संबधित मामले में फैसला लेने वाले न्यायाधीशों को भी भेजी जाती है।
यदि पीठ पुन: सुनवाई का निर्णय बहुमत से लेती है। तो उस याचिका को पुन: उसी पीठ के पास सुनवाई के लिए भेज दिया जाएगा। जिसके द्वारा यह निर्णय दिया गया था।
क्यूरेटिव पिटीशन की सुनवाई के दौरान उच्चतम न्यायालय की पीठ किसी भी स्तर पर किसी भी वरिष्ठ अधिवक्ता को न्याय मित्र [Amicus curiae] के रूप में मामले पर सलाह के लिए आमत्रित कर सकती है।
सामान्यत उपचारात्मक याचिका की सुनवाई जजों के चेंबर में ही की जाती है। परन्तु याचिकाकर्ता के आग्रह पर इसकी सुनवाई खुले न्यायालय में भी की जा सकती है।
उपचारात्मक याचिका के संवैधानिक प्रावधान (Constitutional provisions of Curative Petition)
क्यूरेटिव पिटीशन की अवधारणा का आधार भारतीय संविधान के अनुच्छेद 137 निहित है।
संविधान का अनुच्छेद 137 के तहत भारत के उच्चतम न्यायालय को न्यायिक समीक्षा की शक्ति दी गई है। इस शक्ति के माध्यम से न्यायालय संसद द्वारा पारित किसी भी विधि का पुनर्विलोकन कर सकता है। परन्तु सुप्रीम कोर्ट को यह शक्ति संसद द्वारा बनाई गई विधि के अधीन है। इस याचिका के अंतर्गत यह भी प्रावधान किया गया है कि अनुछेद 145 के तहत बनाए गए कानूनों और नियमो के संबंध में उच्चतम न्यायालय के पास अपने किसी भी निर्णय की समीक्षा करने की शक्ति प्राप्त है।
निष्कर्ष (conclusion of Curative Petition in Hindi)
अत: अब हम यह कह सकते है कि यदि किसी व्यक्ति को सजा हो जाती है तो वह अपने न्याय के लिए अंतिम समय तक लड़ सकता है। और न्याय प्राप्त कर सकता है इसी कड़ी में आरोपी अपने विरुद्ध हुए निर्णय में अंतिम रूप से न्याय पाने के लिए पुन: देश के सबसे बड़े न्यायालय सर्वोच्च न्यायालय में उपचारात्मक याचिका लगाकर अपने न्याय की मांग कर सकता है।