माता रानी भटियाणी सा (जसोल माजीसा) इतिहास व चमत्कार कथा, HISTORY OF JASOL MAJISA

Bhatiyani Majisa माता रानी भटियाणी सा | जसोल माजीसा का इतिहास व चमत्कार कथा, HISTORY OF JASOL MAJISA

HISTORY OF JASOL MAJISA — रानी भटियानी सा एक हिन्दू देवी है इनका बचपन का नाम स्वरूप कंवर है इन्हें माजीसा या भुआसा भी कहा जाता है। जसोल, पश्चिमी राजस्थान, भारत और सिंध, पाकिस्तान में इनके प्रमुख मंदिर है। रानी भटियाणी सा का जन्म ग्राम जोगीदास तहसील फतेहगढ़ जिला जैसलमेर के ठाकुर जोगीदास जी के घर हुआ था।

माता रानी भटियाणी सा का जन्म

जैसलमर के महारावल के तीसरे बेटे पंचायनदास जी के पुत्र पृथ्वीराज जी के पुत्र जोगीदास जी ने जैसलमर में एक छोटा सा गांव बसाया, उन्होंने गांव का नाम जोगीदास रखा।

श्री जोगीदासजी की दो शादी हुई थी, पहली शादी तो बाड़मेर जिले के ठाकुर सा श्री दलपत सिंह पुत्र श्री रतनसिंह जी की बेटी राज कुवर के साथ हुई थी, और दूसरी शादी खीवसर निवासी श्री अर्जुन सिंह पुत्र श्री गोपाल दासोत की बेटी बदन कूवर के साथ हुई थी। लेकिन संतान दोनों में से एक की भी नहीं हुई।

एक दिन श्री जोगीदासजी ने ऋषि की आज्ञा लेकर कुलदेवी मां का व्रत धारण किया और कठौर तपस्या की इसी कारण कुलदेवी माँ खुश हुई ओर वरदान दिया कहा की “हे जादम जेसान… मैं आपके घर कन्या के रूप में खुद कुम कुम रे पगले आऊगी ” और इतना कहते ही माँ लुप्त हो गई।

इसके नौ महीने बाद श्री जोगीदासजी की पत्नी बदन कुवर ने विक्रम संवत 1745 भाद्रपद शुक्ल पक्ष सप्तम (7) सोमवार के दिन कन्या को जन्म दिया, इसके नौवें दिन पुरोहित जी को बुलाकर कन्या का “स्वरूप कंवर” नामकरण किया गया। स्वरूप कंवर के जन्म लेने से जोगीदासजी के तो भाग्य ही खुल गए, उसके बाद उनके तीन पुत्र हुए जिनका नाम हरनाथ सिंह, रायसिंह और लाल चंद था।

माता रानी भटियाणी सा का विवाह

लाड़ प्यार से स्वरूप कंवर बड़े हुए, स्वरूप कंवर के लिए रिश्ता खोजने लगे, उस समय पर जसोल के महारावल कल्याण सिंह जी का विवाह सिरोही के देवड़ा राजपूत श्री मानसिंह जी की बेटी फुल कंवर के साथ हुआ था लेकिन कोई संतान नहीं हुई थी, और उस वक्त संयोग से जोगीदासजी और गुड़ामालानी के राजपुरोहित जी बाड़मेर में मिले। एवं एक रात साथ मे बिताई और जोगीदासजी ने स्वरूप कंवर के सगाई की बात बताई और अपने अपने घर के लिए रवाना हुए।

गुड़ामालानी के राजपुरोहित जी जसोल रावल कल्याण सिंह जी खास थे, एक दिन पुरोहित जी ने उनसे कहा कि इस संसार में हर परेशानी का निवारण है, मैं जानता हूँ कि आप संतान को लेकर दुःखी हैं, इस लिए आपको दूसरा ब्याह कर लेना चाहिए।

पुरोहित जी ने बताया कि जैसलमेर के श्री जोगीदासजी भाटी एक बड़े जागीरदार है उनकी एक बेटी है बहुत ही गुणवान व सुंदर हैं, नाम स्वरूप कंवर हैं, आपका हुक्म हो तो में आगे बात करू, रावलसा ने पूछा की पुरोहित जी आपका टिपणा क्या कहता है मेरे भाग्य में संतान का सुख है कि नहीं !

पुरोहित जी ने टिपणा देखा एवं बताया कि हुकम आपके भाग्य में संतान का सुख है आपका आदेश हो तो में बात पक्की करू रावलसा ने कहा कि ठीक है, और बात पक्की हुई तथा स्वरूप कंवर संग कल्याण सिंह जी की बड़े ही धूमधाम से शादी हुई, और जसोल पधारे। और रावल सा कल्याण सिंह जी पहली पत्नी देवड़ी जी ने मान सम्मान से स्वागत किया और रावले में लिया, और दोनों प्रेम से रहने लगे।

माजीसा के पुत्र लाल बन्ना का जन्म

भटियाणी जी पाठ पूजा करते ओर भगवान का स्मरण करते, शादी के नों महीने बीत जाने के बाद भटियाणी जी ने पुत्र को जन्म दिया, रावलसा बहुत खुश हुए पूरे जसोल मे खुशियां छाई ओर पुरे जसोल में मिठाई बांटी गई और सब ने खुशियां मनाई।

पुत्र का नाम करण करवाया और नाम लाल बन्ना रखा, भटियाणी जी ने देवड़ी जी कहा कि आप भी भगवान का पूजा पाठ करो तो आपको भी पुत्र होगा, उनके कहे अनुसार देवड़ी जी ने भी भगवान का स्मरण किया एवं पुजा पाठ किया और उनको भी पुत्र हुआ उनका नाम कुवर प्रताप सिंह दिया।

दोनों पुत्रों को पालने में झुलता देखकर रावल कल्याण सिंह जी ने कहा कि मेरे तो भाग्य ही खुल गए वो बहुत ही खुश हुए पूरे राज महल मे खुशियां छाई दोनों रानियाँ भी बहुत खुश थी।

एक दिन राज महल में देवड़ी जी की दासी उनके कान भरने लगी और कहने लगी कि देवड़ी जी मुझे तो आपकी बर्बादी दिखाईं दे रही है क्योंकि रानी भटियाणी जी के तो आने से रावल सा के तो भाग्य ही खुल गए, उनके आने से आपका मान सम्मान कम हो गया और उनका पुत्र लाल बन्ना तो बड़े है इसलिए राज के पाटवी तो वो ही बनेंगे।

आपका पुत्र प्रताप सिंह तो छोटे है इसलिए वो तो दरोगा की जगह पर काम करेंगे और आपकी जगह होगी दासी की… हे भगवान देवड़ी जी आपकी ऐसी दुर्गति मुझसे तो देखी नहीं जाएगी, ऐसे दिन देखने से पहले ही हे भगवान मुझे अपने पास बुला ले…

दासी इसी तरह देवड़ी जी के कान भरती रही और देवड़ी जी के मन में हीनता आने लगी ऐसा कुछ दिन तक चलता रहा जिससे देवड़ी जी के कलेजे में आग भभकने लगी, देवड़ी जी को दासी ने इतना भड़का दिया था कि वो दिन रात यहीं सोचने लगे कि कुछ भी करके लाल बना को रास्ते से हटाना है, देवड़ी जी के हाव भाव देखकर भटियाणी जी को शक तो ही हुआ पर यह नहीं सोचा था कि ममता के आंचल में इतना काल और जहर भरा हुआ है।

जब श्रावण महीने की तिज आई भटियाणी जी को तीज में जुला जुलने ओर घूमर नृत्य का बड़ा ही शोक था तीज के त्यौहार पर जब बाग में ढोल बजा तो उधर कुल की सब औरतें तैयार होकर सोलह श्रृंगार करके राज महल में आई ओर भटियाणी जी को घूमर नृत्य करने केलिए साथ में पधारने को कहा, तो भटियाणी जी ने देवड़ी जी से कहा कि हुक्म आप भी पधारें।

तो देवड़ी जी ने चोचा की यहीं अच्छा मौका है लाल बन्ना हटाने का, देवड़ी जी ने कहा मेरे सिर मे दर्द है इसलिए ओर कहा की भटियाणी जी को जाने की आज्ञा दे दी तो भटियाणी जी ने सोलह श्रृंगार करके ओर देवड़ी जी से कहा कि लाल बन्ना सो रहे है आप उनका ध्यान रखना ओर इतना कहने के बाद मे वो सभी कुल की लेडिज के साथ मे बाग में जुला व घूमर नृत्य करने के लिए रवाना हुए, उधर देवड़ी को तो इसी दिन का इंतजार था ओर गहरी नींद में सो रहे लाल बन्ना को जगाकर दूध में विष मिलाकर पिला दिया।

लाल बन्ना ने तो दूध पीते ही वहीं पर प्राण छोड़ दिया, उधर भटियाणी सा ने बाग में कदम रखते ही उनके तो कलेजे में जैसे कि आग जलने लगी उनको लगा कि कुछ तो हुआ है ओर तो वहां से नगे पांव राज महल की ओर भागे ओर महल मे आके लाल बन्ना को देखें तो बात बीत गई ओर अपने कलेजे के टुकड़े को गोदी में लेकर सीने से लगा कर खूब रोए ओर स्वरूप कंवर वहीं गिर गए ओर थन से दूध की धार बहने लगी
देवी का रूप जाग्रत हुआ ओर बात चारो और फेल गई ओर वहां पर रवल्सा कल्याण सिंह जी ओर सभी लोग एकत्रित हुए।

वहा पर देखा तो भटियाणी सा लाल बना को गोदी मे लेकर हरी स्मरण कर रहे है विकराल चंडी का रूप देखकर सभी घबरा गए, देवड़ी जी घोर पाप कर बहुत ही पछताए पर अब क्या करे देवड़ी जी एक खिड़की से भटियाणी जी को देखने लगे, उस समय पर भटियाणी जी की आंखें खुली और कहने लगे की देवड़ी जी आपने तो मेरे वंच को ही मिटाए दिया पर आपका ही ओलाद का कोई सुरा मेरे साथ पुजाएगा।

शक्ति आई अवतार भटियाणी सा शत चडा ओर शरीर का बाल सरेर करके खड़ा हुआ ओर आंखो से अंगारे बरसने लगे ओर कहने लगे, सती री रती चुना ओ, मै इस दगा बाज संसार का पानी भी नहीं पिउगी ओर भटियाणी सा अपने लाल बना की लोत को लेकर के चमचान की ओर रवाना हुए सभी लोग पीछे पीछे चलने लगे चत चडा भटियाणी सा के पैर जमीन से एक फुट ऊंचा चलने लगे यह देखकर लोग भयभीत हो गए।

और भटियाणी सा श्मशान में अपने लाल बन्ना को गोदी में लेकर के बैठ गए एवं बैठते ही अग्नि प्रज्वलित हो गई और देखते ही देखते लाल बन्ना को लेकर के भटियाणी सा सती हो गए उधर पूरे जसोल में शौक कि लहर छा गई।

उधर जोगीदासजी ने एक बुरा सपना देखा तो उन्होंने जोगीदास गांव के रामा मिरासी को बुलाकर के कहा कि तुम्हे जसोल जाना है स्वरूप कंवर से मिलकर के आना है कि वहां पर सब कुछ अच्छा तो है और हाँ तुम्हे सीधे जसोल ही जाना है और वहां से स्वरूप कंवर से मिलकर वापिस आना है तो मिरासी ने कहा कि जो आपका आदेश हूकम और वहां से जसोल के लिए रवाना हो गया।

माता रानी भटियाणी का चमत्कार

रामा मिरासी अपनी पत्नी को साथ में लेकर के जसोल आया और रावले में आकर के कहा कि मैं जोगीदास गांव से आया हूं और स्वरूप कंवर से मिलना है तो राज महल की दासियो ने कहा कि भटियाणी सा तो ऊपर महल में है जाकर के मिल लो और दान भी ले लेना, लेकिन मिरासी को पता नहीं था कि स्वरूप कंवर अब इस दुनिया में नहीं है मिरासी ऊपर महल में जाकर के भटियाणी सा को बुलाने लगा और गाना गाने लगा तो थोड़ी देर मे महल का दरवाज़ा अपने आप खुल गया और भटियाणी सा वहां पर प्रकट हुए।

भटियाणी सा ने मिरासी से कहा कि आईये रामा मिरासी कैसे है ? और जोगीदास गांव के हाल चाल पूछे ? तो मिरासी ने कहा कि वहां पर सब अच्छा है हुक्म आपसे मिलने के लिए आये है भटियाणी सा ने उनको खाने के थाल में मिठाई, छत्तीस पकवान, कपड़े और सोने के आभूषण दिए।

भटियाणी सा ने रामा जी मिरासी से कहा कि रावल सा से कहना कि भटियाणी सा ने दान दे दिया है और आपको चाँदी का दो रिंग वाला ऊंट देवें और मिरासी ने खाना खाया और कहा कि “जो हुक्म आपका…” इतना कहने के बाद मिरासी जाने लगा तो भटियाणी सा कहा कि रामा जी एक बात बोलूं आपको डर तो नहीं लगेगा,

तो मिरासी ने कहा कि आपके होते हुए कैसा डर… तो भटियाणी सा ने कहा कि अब मैं इस संसार में नहीं हूं, और डरने की कोई जरूरत नही है आप घर जाकर के मेरे नाम कि अगरबती करना और चरजा देना, तो आपको हर रोज एक सोने की मोहर मिलेगी और हाँ यह बात किसी को बताना नहीं वरना आपको सोने की मोहर नहीं मिलेगी। अगर यह बात किसी को बताई तो आपको अनाज व कपड़े आदि ही मिलेगें मोहर नहीं मिलेगी इतना कहकर स्वरूप कंवर वहा से अदृश्य हो गए।

मिराची वहां से दान लेकर रावल सा कल्याण सिंह जी के पास आया और कहा कि हुक्म स्वरूप कंवर ने भेट देदी है और आपको चांदी की रिग वाला ऊठ देने को कहा है, रावल सा ने कहा ऐसा कैसे हो सकता है भटियाणी सा को गुज़रे हुए 6 दिन हो गए हैं।

तो रावल सा ने मिरासी की भेट को देखा तो उन्होंने कहा कि ये आभूषण तो राज महल के है और वहां से गायब हैं, रावल सा कल्याण सिंह जी के पास बैठे पुरोहित जी ने कहा कि जी अगर तुम्हारी बात सत्य है तो तुम्हें साबित करना होगा कि भटियाणी सा ने तुम्हें ये भेट खुद अपने हाथों से दी है।

रावल सा ने कहा कि शाम को संध्या के समय तुम्हे एक खेजड़ी की सूखी लकड़ी को श्मशान में जाकर के लगाना है और सुबह तक अगर यह लकड़ी हरी भरी हो गई तो हम मानेंगे की तुम कह रहे हो वो सच है और अगर तुम झूठे निकले तो सोच लेना की तुम्हारा क्या होगा !

शाम को रावलसा ने दो महेचा राजपूत और एक ब्राह्मण को मिरासी के साथ श्मशान में एक खेजड़ी की सूखी लकड़ी को लेकर के भेज दिया। वहां पर लकड़ी को लगा दिया और मिरासी ने कहा कि हे स्वरूप कंवर आप हमारी लाज रखाजो नहीं तो रावलसा हमें मार देंगे इतना कहकर वहां से वापिस आये।

दूसरे दिन सुबह वापस वहां पर जाकर के देखा तो वो सूखी लकड़ी हरी भरी हो गई, यह देखकर राजमहल में आकर के रावलसा कल्याण सिंहजी से कहा कि हुक्म वो सूखी लकड़ी तो हरी भरी हो गई है रावल सा को यकीन नहीं हुआ और कहा मैं खुद वहां जाकर के देखता हूँ।

सभी के साथ में रावल सा कल्याण सिंह जी ने वहां जाकर के देखा तो उनकी आँखें खुली की खुली रह गई वहां पूरे श्मशान में चारों ओर दिए जल रहे थे और सूखी लकड़ी भी हरी भरी हो गई थी।

रावल सा कल्याण सिंहजी वहाँ देखकर समझ गए कि ये सब भटियाणी सा ने ही किया है, अपने दोनों हाथ जोड़कर माफी मांगी और कहा कि भटियाणी सा मुझे माफ कर दो… मैं समझ गया हूँ कि यह सब आपने ही किया है और वहाँ पर मंदिर बनाने को कहा।

आज वहाँ पर बहुत बड़ा धाम है, उधर मिरासी ने जोगीदास गांव जाकर के स्वरूप कंवर के नाम कि अगरबती करने लगा और छरजा भरने लगा तो उसको रोजाना सोने की मोहर मिलने लगी, लेकिन एक दिन इसका पता राजा जोगीदासजी को लगा और मिरासी को सारा सच बताना पड़ा और उसके बाद से मिरासी को सोने की मोहर मिलनी बन्द हो गई।

जोगीदासजी ने वहां गांव जोगीदास में भी स्वरूप कंवर का मंदिर बनवाया और पूजने लगे, अब वहां पर भी भटियाणी सा का बड़ा मंदिर है। जसोल में भी माता रानी भटियाणी सा का बहुत ही बड़ा धाम है और लाखों लोग माँ के दर्शन करने आते है, माता रानी भटियाणी सा का जगत में ऊंचा नाम है।

🙏🙏( जय माता रानी भटियाणी सा जसोल धाम )🙏🙏…

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🙏🙏( जय माता रानी भटियाणी सा जसोल धाम )🙏🙏…

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